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आज के लेख में हम आपको बताएंगे, कि ” गुरु नानक का जन्म कहां हुआ था ” उनकी प्रारंभिक जीवन कैसे और कहां बीता था, तो देर किस बात की चलिए शुरू करते हैं और जानते हैं, गुरु नानक जी के बारे में सबसे रोचक बातें।
गुरु नानक का जन्म कहां हुआ था
पाकिस्तान में स्थित ” रावी नदी ” के तट पर बसे तलवंडी नामांक एक छोटे से गांव के खत्री कुल में गुरु नानक जी का जन्म हुआ था। लेकिन आज तक गुरु नानक जी के जन्म तिथि पर कोई भी इतिहासकार एक राय नहीं दे सके हैं। यही कारण है, कि गुरु नानक जी की जन्म तिथि पर आज तक इतिहासकारों का मतभेद जारी है।
इतिहासकारों का कहना है, कि गुरु नानक जी का जन्म 15 अप्रैल 1470 में हुआ था। लेकिन आज वर्तमान में उनकी जन्मतिथि कार्तिक पूर्णिमा के दिन बहुत ही धूमधाम के साथ मनाई जाती है, जो प्रत्येक वर्ष अक्टूबर-नवंबर में दिवाली के ठीक 15 दिन बाद आता है।
गुरु नानक जी का प्रारंभिक जीवन
गुरु नानक जी बचपन से ही सांसारिक विषयों में उदासीन रहा करते थे। उनका मन कभी भी पढ़ने लिखने में नहीं लगा। उनके पिताश्री का नाम ” मेहता कालू ” तथा माता जी का नाम ” तृप्ता देवी ” था। गुरु नानक जी की एक बड़ी बहन भी थी, जिनका नाम ” नानकी ” था।
गुरु नानक जी ने बचपन से ही विभिन्न प्रादेशिक भाषाएं जैसे कि अरबी, फारसी इत्यादि की शिक्षा प्राप्त कर ली थी। गुरु नानक का जन्म जिस तलवंडी नामक छोटे से गांव में हुआ था, आज उस जगह का नाम बदलकर ननकाना पड़ गया है, जहां आज के समय में कई पर्यटक घूमने आया करते है।
गुरु नानक देव जी जब 5 वर्ष के थे, तब उनके पिता मेहता कालू उन्हें वैदिक साहित्य तथा हिंदी भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए पंडित गोपाल दास पांडे के यहां भेज दिया था। बचपन से ही बुद्धिमान और चंचल स्वभाव के बालक थे, उनके गुरु पंडित गोपाल दास उनकी बुद्धिमत्ता और योग्यताओं से काफी प्रसन्न थे।
एक समय जब कक्षा में गुरु नानक ने भगवत्प्राप्ति के संबंध में कुछ प्रश्न अध्यापक से पुछे तो उन्होने उनके सामने हार मान ली तब अध्यापक ने गुरु नानक जी को सम्मान के साथ घर पहूंचा दिया। इसके बाद वे पूरा- पूरा समय आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग मे बिताने लगे।
हाला की बचपन में उनके साथ कई ऐसी चमत्कारिक घटनाएं घटी, जिसे देखकर उनके आसपास के लोग उन्हें दिव्य व्यक्तित्व वाला बालक मानने लगे थे।
गुरु नानक देव जी का विवाह
गुरु नानक जी का विवाह 1487 में गुरदासपुर जिले की रहने वाले ” मूला ” नामक व्यक्ति की पुत्री से हुआ था, जिसका नाम ” सुलाखनी ” था। जिससे उन्हें 2 पुत्र हुए पहला पुत्र श्री चंद्र ( वर्ष 1491 में ) तथा दूसरा और सबसे छोटा पुत्र लखमी दास ( वर्ष 1496 में ) हुआ।
गुरु नानक जी अपने भैया और भाभी की कहे अनुसार 1485 में दौलत खान लोधी के दुकान पर आधिकारि रूप में नियुक्ति ली जो कि सुल्तानपुर में मुसलमानों का शासक हुआ करता था। उसी जगह पर गुरु नानक जी की मुलाकात एक मुस्लिम कवि मिरासी से हुई थी।
गुरु नानक जी ने खुद एक मिशन की शुरुआत मर्दाना के साथ मिलकर किया, उन्होंने जोर शोर से कमजोर लोगों मदद करने का संदेश दिया। साथियों ने मूर्ति पूजा, जातिभेद और कुरीति धार्मिक विश्वासों के खिलाफ प्रचार किया।
गुरु नानक देव जी ने अपने नियमों और सिद्धांतों का प्रचार प्रसार करने के लिए अपने घर तक को त्याग दिया और एक सन्यासी के रूप में जीवन व्यतीत करने लगे। वह हिंदू और मुसलमान दोनों ही धर्म के विचारों को मिलाकर एक नए धर्म की स्थापना की जिसे आज दुनिया भर में सिख धर्म के नाम से जाना जाता है।
गुरु नानक जी सिख धर्म के संस्थापक थे। गुरु नानक सिखों के सबसे पहले गुरु है। उनके अनुयाई इन्हें नानक शाह गुरु, नानक देव जी, गुरु नानक, बाबा नानक इत्यादि नामों से पुकारते हैं। इतना ही नहीं तिब्बत और लद्दाख के लोग इन्हें नानक लामा कहकर भी पुकारा करते हैं।
गुरु नानक जी ने आध्यात्मिक शिक्षाओं की नींव रखी थी, जिससे ही सिख धर्म की शुरुआत हुई। यही कारण है, कि इन्हें एक धार्मिक नवप्रवर्तन भी माना जाता है। उन्होंने अपने शिक्षाओं को दूर-दूर तक फैलाने के लिए मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया की यात्रा की थी।
उन्होंने अपने शिष्यों व अनुयायियों को यह सिखाया की संसार के प्रत्येक इंसान ध्यान और विभिन्न पवित्र प्रथाओं के जरिए ही भगवान तक पहुंच सकते हैं। उन्होंने मठवासी वाद का समर्थन कभी भी नहीं किया और उन्होंने सदा अपने अनुयायियों से ईमानदारी के साथ ग्रहस्थ जीवन जीने का नेतृत्व किया।
गुरु नानक जी की शिक्षाओं को 974 भजनों के रूप में दुनिया भर में अमर कर दिया गया है, जिसे सिख धर्म के सबसे पवित्र पाठ ” गुरु ग्रंथ साहिब ” के नाम से जाना जाता है।
गुरु नानक देव जी की मृत्यु
नानक देव जी अपने ज्ञान और शिक्षा के जरिए हिंदू मुस्लिम और प्रत्येक धर्मों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुके थे, क्योंकि उनके मार्गदर्शन और बातों को दोनों ही समुदायों ने आदर्श माना और उनका सम्मान किया।
अपने जीवन के आखिरी पलों में दुनिया भर के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए थे, लोग इनकी बातें बहुत ही ध्यान से सुना करते थे और उनके बातों पर चलते थे।
उन्होंने करतारपुर नामांक एक नगर बसाया था, जहां उन्होंने एक धर्मशाला बनवाया था, जिसे आज गुरुद्वारा कहा जाता है। गुरु नानक देव जी 22 सितंबर 1539 में इस दुनिया से रुखसत हो गए। गुरु नानक देव जी की मृत्यु के बाद उनके परम भक्त और शिष्य लहंगा उनके उत्तराधिकारी बने, जो आगे चलकर गुरु अंगद देव के नाम से दुनियाभर में प्रसिद्ध हुए।
निष्कर्ष
मुझे उम्मीद है, कि आज का यह लेख ” गुरु नानक का जन्म कहां हुआ था ” से काफी जानकारी प्राप्त हुई होगी। तो यदि आपको आज का यह लेख पसंद आया है, तो इसे अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करें, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को सिखों के सबसे प्रथम गुरु – ” गुरु नानक देव जी ” के बारे में जानकारी प्राप्त हो सके।