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आज की इस पोस्ट में हम ” महावीर का जन्म कहां हुआ था ” के बारे में जानेंगे। भगवान महावीर को कौन नहीं जानता, उनके त्याग और तपस्या की कहानी तो बच्चे बच्चे जानते हैं।
महावीर स्वामी को जैन धर्म में 24वें तीर्थंकर के रूप में माना जाता है। जिनका जन्म आज से लगभग ढाई हजार साल पहले हुआ था। जी हां और आज हम भगवान महावीर के बारे में पूरी जानकारी आप तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे, कि महावीर का जन्म कहां हुआ था और उन्होंने लोगों के लिए क्या किया, तो आइए चलिए शुरू करते हैं।
महावीर का जन्म कहां हुआ था
महावीर का जन्म आज से लगभग ढाई हजार साल पहले यानी की ईसा से 599 वर्ष पुर्व वैशाली गणतंत्र के छत्रिय कुंडलपुर में चैत्र शुक्ल तेरस को पिता सिद्धार्थ और माँ त्रिफला के यहां तीसरी संतान के रूप में हुआ था।
माता-पिता ने इनका नाम वृद्धमान रखा, जो बाद में आगे चलकर स्वामी महावीर बना। भगवान महावीर को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे कि :- अतिवीर, वृद्धमान, वीर और सन्मति।
30 साल की उम्र में उन्होंने अपने घर को त्याग दिया और एक लंगोटी तक का परीग्रह नहीं किया। वर्धमान बचपन से ही बहुत शांत स्वभाव का बालक थे, उनके बड़े भाई का नाम नंदीवर्धन तथा बहन का नाम सुदर्शना था।
वर्धमान एक राजकुमार थे और उनका बचपन राज महल में ही बीता। जब वर्धमान 8 साल के हुए तब उन्हें शिक्षा देने, धनुष आदि चलाने सीखने के लिए शिल्पशाला भेजा गया।
भगवान महावीर को लेकर विभिन्न संप्रदायों की अलग-अलग मान्यताएं हैं। जैसे :- श्वेतांबर संप्रदाय की मान्यता के अनुसार वर्धमान का विवाह यशोदा नाम की युवती से हुआ था और जिससे उनकी एक बेटी हुई जिसका नाम था – अयोध्या, परंतु दिगंबर संप्रदाय की मान्यता के अनुसार वर्धमान का विवाह नहीं हुआ था, उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बाल ब्रह्मचारी बनकर गुजारे थे।
भगवान महावीर का जीवन परिचय
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। जिनकी पूरी जिंदगी त्याग और तपस्या से भरी हुई थी। महावीर और गौतम बुध का जन्म एक ही युग में हुआ था, जब दुनिया में हिंसा, पशुबलि तथा जाती – पाती का भेदभाव अधिक बढ़ने लगा। इन दोनों ने मिलकर दुनिया में हो रहे अत्याचारों के खिलाफ जमकर आवाज उठाई और अहिंसा का भरपूर विकास किया। इतना ही नहीं महावीर स्वामी को जैन धर्म में अहिंसा के मूर्तिमान के प्रतीक के रूप में माना जाता है।
भगवान महावीर के पंचशील सिद्धांत
भगवान महावीर ने दुनिया भर में सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया। वे अहिंसा को सबसे अव्वल और नैतिक गुण बताते थे। जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत को दुनिया भर में बताया जो कुछ इस तरह है :-
- सत्य – प्राया सत्य बोलना चाहिए।
- अहिंसा – कभी भी कर्म वाणी और विचारों में किसी भी प्रकार का अहिंसा नहीं करना चाहिए और ना ही गलती से भी किसी को चोट पहुंचा नहीं चाहिए।
- अपरिग्रह – जिंदगी एक मोह है, इसलिए कभी भी किसी तरह की संपत्ति ना रखें और ना ही किसी चीज से ज्यादा जुड़े।
- आचौर्य – इसका तात्पर्य यह है, कि कभी भी छोटी या बड़ी किसी प्रकार की चोरी ना करें।
- ब्रह्माचार् – जिस तरह एक ऋषि मुनि भोग विलास से दूर रहते हैं, उसी तरह गृहस्थ को भी अपने साथी के साथ हमेशा वफादारी निभानी चाहिए।
इतना ही नहीं जैन धर्म के तमाम मुनि, श्रावक, आर्यिका, श्राविका भगवान महावीर के बताए गए इन पंचशील गुणों का पालन करते है। महावीर ने अपने प्रवचन और उपदेश के माध्यम से दुनिया को सही राह दिखाई है और सही मार्गदर्शन दिया है। लोग महावीर स्वामी को सज्जंस ( श्रेयांस ) और जस्स ( यशस्वी ) कह कर भी पुकारते थे। भगवान महावीर बचपन से ही बहुत साहसी, तेजस्वी ज्ञानी और अत्यंत बलशाली थे, इसलिए उन्हें महावीर कहा जाता था।
भगवान महावीर द्वारा किए गए त्याग
जब भगवान महावीर केवल 28 वर्ष के थे, तब उनके माता पिता की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उनके बड़े भाई ने अपने पिता की राजगद्दी संभाली उस समय महावीर ने अपने बड़े भाई नंदीवर्धन से आज्ञा ली, कि वे घर से कहीं दूर जाना चाहते हैं तब नंदीवर्धन ने वर्धमान को बहुत समझाया जिसके बाद उन्होने घर से दूर जाने की योजना स्थगित कर दी।
लेकिन 2 साल बाद यानी 30 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना घर त्याग दिया और एक जंगल में जाकर घोर तप और ध्यान करना शुरू कर दिया।
12 साल तक लगातार घोर तपस्या करने के बाद आखिरकार महावीर स्वामी ने शांति प्राप्त कर ली। वह अपने गुस्से पर काबू करना सीख गए और प्रत्येक प्राणियों के साथ उन्होंने अहिंसा की नीति अपनाई जिसके बाद अलग-अलग जगहों पर जैन धर्म का प्रचार प्रसार करना शुरू कर दिया।
सभी जगहों की सभ्यताओं और अच्छी चीजों को अपने अंदर संजोगदे गए। उन दिनों महावीर स्वामी केवल 3 घंटे सोया करते थे, 12 साल के लगातार तपस्या के दौरान वे कई अलग-अलग जगहों पर जाकर तकिया और अपने धर्म का प्रचार किया, जिनमें से कुछ जगह इस तरह है। जैसे :- बंगाल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि।
हालांकि इन दिनों वह कई परेशानियों से गुजरे हैं, लोगों ने उनका अपमान किया और बच्चों ने उन पर पत्थर तक फेंके। लगातार लोगों के द्वारा अपमानित होते रहे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने पथ पर चलते रहे।
महावीर एक ऐसे धार्मिक नेता थे, जिन्होंने राज्य का या किसी भी दूसरे बाहरी शक्तियों का सहारा लिए बिना अपनी श्रद्धा और लगन के बल पर वह जैन धर्म की पुनः प्रतिष्ठा की। यही कारण है, कि आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उनके दर्शन का पूरा श्रेय भगवान महावीर को दिया जाता है।
भगवान महावीर की आध्यात्मिक यात्रा
ऐसा कहा जाता है, कि भगवान महावीर जिस जंगल में तप कर रहे थे और जहां से उन्होंने अपना ज्ञान लोगों तक पहुंचाया उसी जंगल में 11 ब्राह्मणों को बुलाया गया था, ताकि भगवान महावीर द्वारा कहे गए, प्रत्येक शब्दों को लिखित रूप दिया जा सके। यही लिखे गए तमाम दस्तावेज आगे चलकर उपनिव, त्रिपादी ज्ञान, विगामिवा और धुवेइव कहलाए।
शुरू-शुरू में जो लोग भगवान महावीर के शिष्य बने थे, वह अपने मित्रों और सगे संबंधियों को भी अपने साथ भगवान महावीर की शरण में ले आए, ताकि उन्हें भी अच्छी शिक्षा प्राप्त हो सके।
उन लोगों को भी भगवान महावीर सुखी जीवन जीने और मोक्ष की प्राप्ति का ज्ञान देने लग गए। धीरे-धीरे लोगों की संख्या बढते बढते लाखों तक पहुंच गई और फिर उनकी संस्था में लगभग 36,000 आर्यीका, 14000 मुनी, 1,59,000 श्रावक और 3,18,000 श्राविका हो गए थे। कहते हैं, यह चार समूह अपने आप में ही एक तीर्थ हुआ करते थे।
भगवान महावीर की मृत्यु
भगवान महावीर ने अपनी पूरी जिंदगी लोगों पर न्योछावर कर दी, उन्होंने न केवल लोगों तक अपना ज्ञान पहुंचाया, बल्कि तमाम अभिजात वर्गों के सांस्कृतिक के खिलाफ स्थानीय भाषा का भी निर्माण किया और उस भाषा को फैलाने के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
भगवान महावीर ने अपना आखिरी प्रवचन पावापुरी में दिया, जो लगभग 48 घंटे तक चला और वह अपने आखिरी प्रवचन खत्म करने के बाद 527 ईसा पूर्व में इस दुनिया को अलविदा कर दिए।
हालांकि भगवान महावीर की जिंदगी में जैन धर्म, मगध, अंग, काशी, विदेह, मिथिला इत्यादि जैसे राज्यों में बहुत ही लोकप्रिय हो गया था। इतना ही नहीं बल्कि मौर्य वंश और गुप्त वंश के शासन काल के मध्य में जैन धर्म पूर्व के उड़ीसा से लेकर पश्चिम में मथुरा तक फैल चुका था, लेकिन आखिरकार भगवान महावीर की मृत्यु के लगभग 200 सालों बाद जैन धर्म दो संप्रदायों में टूट गया :-
- दिगंबर जैन और
- श्वेतांबर जैन ।
दिगंबर जैन धर्म और श्वेतांबर जैन धर्म में बहुत फर्क है, जैसे कि दिगंबर जैन धर्म के मुनियों के लिए नग्न रहना बहुत जरूरी है। जबकि श्वेतांबर जैन के मुनि सफेद वस्त्र धारण करते हैं।
भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अलग-अलग पक्षों को जैन धर्म ने बहुत ही प्रभावित किया है। इतना ही नहीं बल्कि साहित्य दर्शन और कला क्षेत्रों में भी जैन धर्म का बहुत योगदान रहा है। अहिंसा का सिद्धांत जैन धर्म की ही प्रमुख देन है, महावीर स्वामी ने पेड़ पौधे से लेकर पशु पक्षी तक की हत्या ना करने का अनुरोध किया है।
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निष्कर्ष :-
दोस्तों आज के लिए बस इतना ही मुझे उम्मीद है, कि आज का यह लेख ” महावीर का जन्म कहां हुआ था OR Mahaveer Ka Janm Kahan Hua Tha महावीर का जीवन परिचय आपको बेहद पसंद आया होगा।
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